इस शृंखला में ४था प्रहर मतलब सुबह का तीसरा प्रहर। जैसे की पिछले एपिसोड में बात हुई थी के, पूरे १० से लेकर ४ बजे तक के दोनो प्रहारों को, “दोपहर” माना जाता है, तो यहाँ पर फिरसे कोमल गांधार प्रेरित रागों का प्रभुत्व रहता है। ख़ास तौर पर १ से ४ इस प्रहर में सारंग से ज़्यादा काफ़ी राग से उद्रित रागों का प्रयोग शुरू हो जाता है। याने के काफ़ी ठाठ का सबसे प्रमुख राग है राग काफ़ी। काफ़ी से आता है भिमपालसी। भिमपालसी से आता है राग पटदीप।
राग पटदीप भक्ति रस प्रधान राग है। इसलिए इस राग में हमें कई देवताओं के वर्णनों की
बंदिशें मिलती
हैं। प्रकृति में इस प्रहर में हम महसूस कर सकते है के दिन के उजाले में खुले आसमान में भी एक प्रकार का गूढ़ वातावरण छाया रहता है। यही वातावरण हमें उस सगुण ईश्वर की ओर आकर्षित करता है।
दिन दिन आनंद इस शृंखला में पहले भी बात हुई है की ख़याल प्रस्तुतीकरण में ज़्यादातर उपज अंग का प्रयोग होता। यह सबसे उच्च स्तर का संवाद ज़रूर है, लेकिन कुछ ऐसे घटक है जो उपज अंग में सही तौर पर प्रस्तुत करना मुश्किल है। जैसे के कुछ ख़ास तिहायीयाँ। गणित की दृष्टि से मुश्किल तिहायीयाँ उपज अंग से सही सही मुमकिन होना थोड़ा मुश्किल हो जाता है। तो जब प्रस्तुतीकरण को प्रस्थापित (fixed) रूप से किया जाए तो तिहाई का दायरा बढ़ जाता है। राग पटदीप की प्रस्तुतीकरण में यही अंग लाने की कोशिश की गयी है।
लिहाज़ा ज़्यादातर उपज अंग इस प्रस्तुति में दिखायी देगा, किंतु तान क्रिया में तिहाई के अलग प्रकार यहाँ गाने की कोशिश है।