सुबह के प्रथम प्रहर में जैसे सारे शुद्ध स्वर प्रयोग में आते है वैसे ही रात के प्रथम प्रहर में शुद्ध स्वर आते है। अगर फ़र्क़ है तो मध्यम का। जहाँ सुबह शुद्ध मध्यम प्रबल रहता है वही रात के प्रहर में तीव्र मध्यम अपना स्वतंत्र स्थान बनाता है। इस प्रहर के रागों में भी शुद्ध मध्यम का प्राबल्य ज़रूर दिखता है लेकिन जहाँ सुबह तीव्र मध्यम, छिपे छिपे या न के बराबर प्रयोग में आता है वही तीव्र मध्यम रात में ज़्यादा स्पष्ट रूप में प्रतीत होता है।
राग यमन में तो तीव्र मध्यम स्पष्ट रूप में है लेकिन कल्याण के अन्य रागों में वह किसी ख़ास पद्धति से आता है। यह बातें शास्त्र की नहीं, तो कला की है। कोई रंग किसी चित्र में किस तरह से प्रयोग में आता है, उस पर पूरे चित्र का चरित्र सिद्ध होता है।
एक ख़ास बात इस समय के रागों में यह है की, कई रागों में
दोनों मध्यम एक साथ प्रयोग में आते हैं। लेकिन इनकी अलग अलग छटाएँ इनमें दिखती हैं। जैसे राग केदार में दोनों मध्यम बिल्कुल पास पास से गुज़रते हैं।
राग मारू बिहाग एक ऐसा ही ख़ास राग है, जिसमें तीव्र मध्यम का प्राबल्य है लेकिन, शुद्ध मध्यम एक अलग ही शोभा लेकर आता है।
इस राग में “सवाल-जवाब” इस तत्व का प्रयोग प्रस्तुति के लिए किया गया है। सवाल जवाब का मतलब है कि, रागों में पूर्वार्ध में जो स्वराकृति (phrase) गाई जाती है, उसी की समाप्रकृतिक स्वराकृति राग के उत्तरार्ध में पायी जाती है। जैसे कि नि-सा-ग और म-प-नि । ऐसे कई सारे सवाल-जवाब मारू बिहाग में मिलते है। और इन्ही को लेके पश्चिमात्य संगीत की Harmony यहाँ पर बनाने की कोशिश है। भारतीय संगीत यह melody पर आधारित ज़रूर है, लेकिन इसकी पार्श्वभूमि तानपुरा प्रेरित हार्मनी ही है।
इन्हीं सारे मूल्यों को लेकर राग मारू बिहाग की प्रस्तुति की गई है।