सूर्योदय के समयसे आगे चलते हुए अब अगला प्रहर मतलब सुबहका प्रथम प्रहर। दिन का प्रथम प्रहर और सुबह का प्रथम इसमें फ़र्क समझना भी यहाँ पर ज़रूरी है। सुबहके प्रथम प्रहर यानेके ७ से १० में प्रकृति धीर-गंभीर वातावरण से हटकर एक उल्हासित और प्रफुल्लित वातावरण में परिवर्तित हो जाती है। ओस की बूँदे फूलों और पत्तोंपर, सूर्य की किरणोसे ऐसे चमक उठतीं है के मानो धरती पर चाँदनी फैलीं हुई हो। पशु प्रणियो में भी एक नयी उमंग दौड़ती है। पंछीओं के चहक से नयीं लेहरे वातावरण में घुलमिल जाती है।
राग संगीत भी अति कोमल रिषभ के गंभीर वातावरण से निकलकर शुद्ध रिषभ के प्रसन्नता की ओर जाता है। षडज-पंचम भाव से धैवत भी शुद्ध रहता है। याने के सारे शुद्ध स्वरों का प्रहर ही सुबह का प्रथम प्रहर है। बिलावल ठाठ के सारे राग इस प्रहर में गाए बजाए जाते है। राग भूप के ही स्वर लेकिन बिलावल अंग से सम्बंधित राग है राग देसकार। इस राग में प्रकृति के सुबह के वातावरण की सभी ख़ूबियाँ हुबहु झलकती है।शुद्ध स्वर गतिशील लय की वजह से यह राग इस प्रहर से जुड़ा हुआ है।
दिन दिन आनंद यह प्रयोग प्रस्तुतीकरण के अलग अलग पैलु सामने लाने की कोशिश करता है। इसका एक महत्वपूर्ण ज़रियाहै बंदिश। हर एक बंदिश कुछ ख़ासियत लेकर आती है। इस राग में प्रस्तुत बंदिश में पहली पंक्ति के शब्द है झंझरिया झनकें झनकें….याने आख़री शब्द २ बार आ रहा है। तो इसकी बढ़त भी इसी अंग से हो तो नयापन आ जाता है। दूसरी पंक्ति जो है वो ३ अलग स्वर -संगति से बाँधी गयी है। तो यह भी बढ़त का एक महत्वपूर्ण आधार बनता है।
इन सारी बातोंको ध्यान में रखते हुए बनी है यह दूसरी प्रस्तुति राग देसकर…