हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत में हर एक राग की अपनीही अभिव्यक्ती होती है, अपना अलग स्वभाव होता है, अपनी खासियत होती है। इसी स्वभाव, गुणधर्म और व्यक्त करनेकी शक्ति के कारण यह राग हमसे जुड़ गये हैं। इन रगों के साथ हमारे रिश्ते की एक महत्वपूर्ण कड़ी है - "समयचक्र"।
प्रभात समय के प्रसन्न और अद्भुत पलों से लेकर, उत्तररात्री के गूढ़ पलों तक, अलग अलग ढंग से, विभिन्न राग जुड़े हुए हैं। यही हमारे उत्तर हिन्दुस्तानी संगीत की अहम् खासियत है, जो अन्य किसी भी प्रकार के संगीत में नहीं पायी जाती।
तो फिर ऐसी कौन सी बात थी की यह प्रथा हमारे राग संगीत में प्रचलित हुई? हमारे शास्त्रीय संगीत की शुरुआत हुई मंदिरों से। पूजा-पाठ के समय देव-देवताओं के गुणगान करनेवाली रचनाओं को विविध प्रकार के सुरों से सजाया गया। प्रभुस्तुति के गीतों को विशिष्ट समय और विशिष्ट सुरों में पिरोया गया। इसी कारण उस संगीत रचना और उसी समय के नियम आपस में दृढ़ हो गए। यही संस्कार गायक और श्रोताओं के मन पर भी अपना प्रभाव डालते चले गए। इन्ही रचनाओं, धुनों, और सुरों की आलापी रची गयी। यह आलाप गीतों से पहले या गीतों के साथ गाए जाते। कभी रचनाओं के बजाय यह आलाप विशिष्ट समय पर गाए जाने लगे। जब यह आलाप का निश्चित आकृतिबन्ध तय हुआ, तब उन्हें "राग संज्ञा" प्राप्त हुई। और उनका समयचक्र से बना रिश्ता कभी भी छूटा नहीं। संस्कार और परंपराओं का यह मेल आदिकाल से आजतक चला आ रहा है और यही हमारे संगीत के शक्ति का प्रतीक है।
शास्त्रीय दृष्टि से देखा जाये तो विशिष्ट समय पर विशिष्ट राग के स्वर मनुष्य के गानपद्धति से मिलते-जुलते हैं। इसलिये गायक की आवाज और उसकी प्रकृति, क़ुदरत के दिनभर के चढ़ाव-उतार के साथ बदलती है। मनुष्य स्वभाव, रागसंगीत और निसर्ग का निकट संबंध है। क्षितिज या आकाश में सूर्य की स्थिती पर मनुष्य की आवाज की स्थिती निर्भर है। और इस आवाज की स्थिती पर हर राग का गानसमय निर्भर है। इसी विचार को विस्तृत प्रकार से प्रस्तुत करता है सुरंजन का नया उपक्रम - दिन दिन आनंद।
दिन के २४ घंटे होते हैं। इन २४ घंटों को ८ प्रहरों में बॉंटा गया है। पहला प्रहर सुबह के ४ से ७ तक होता है। यही सूर्योदय का समय है। इस प्रहर में भैरव, पूर्वी, मरवा आदि थाटों के स्वरसंगीत में बंधे राग गाये बजाये जाते हैं। इनमें कोमल रिषभ यह स्वर सभी रागों का प्रतीकात्मक स्वर है। इसी समय का एक राग है भटियार। मरवा थाटका राग होते हुए भी, प्रमुख स्वर है "शुद्ध मध्यम"। साथ "तीव्र मध्यम" रात्रीके समाप्ति का प्रमाण है। सिर्फ यही नही, भैरव राग का रिषभ तो धिरे धिरे क्षितिज पर उदित होनेवाले सूर्य की तरह है।
इस प्रहर के वातावरण और उसके अनुकूल स्वरसंगीत की अनुभूति हम आज करेंगे राग भटियार में रची एक बंदिश से डॉ. मीनल मटेगांवकर और पूजा बाकरे की यह पेशकर हमें प्रभात समय की प्रसन्नता का अनुभव देती है। आइये, इसका आनंद उठाएँ।
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Dear Sirs,
It’s amazing presentation. Enjoyed.