दिन दिन आनंद के इस शृंखला का तीसरा राग, राग शुद्ध सारंग। प्रहर है सुबह १० से दोपहर १ बजे का। सूर्य की तीक्ष्ण किरणे धरती को नहलाना शुरू कर देती हैं। शास्त्र के अनुसार १० से ४ इस पूरे समय को “दोपहर” माना गया है। इसलिए इस पूरे समय में आसावरी, काफ़ी, भैरवी इन थाठों के राग गाए बजाए जाते हैं। यह गौर करने वाली बात है की जिस तरह दूसरे प्रहर में संगीत का झुकाव कोमल रिषभ, से हटकर शुद्ध रिषभ की तरफ आता है, उसी तरह तीसरे प्रहर में संगीत का झुकाव शुद्ध रिषभ से हटकर कोमल गांधार की तरफ़ जाता है। इसी समय में सारंग के प्रकार शामिल हैं। सारंग के कई प्रकार काफ़ी थाठ से है। “प, म-रे” और “ नी- प- रे “ ये स्वर संगतियाँ सारंग-अंग का वैशिष्ट्य है।
प्रस्तुत राग शुद्ध सारंग, थाठके सिलसिले में विवादित राग रहा है।इसके स्वर वैसे तो कल्याण से मिलते हैं मगर इसका राग-अंग और चलन, सारंग-अंग के समान होने के कारण यह राग काफ़ी थाठ का भी माना गया है। यहाँ पर और एक बात महत्वपूर्ण है की, हमारी थाठ पद्धति सिर्फ़ स्वर पर निर्भर नहीं है। राग के चलन पर ज़्यादा निर्भर है। इसीलिए तो बिलावल के कई प्रकारों में कोमल निषाद होते हुए भी वे खमाज थाठ के अंतर्गत नहीं आते। इसी सिद्धांत को ध्यान में रखें, तो शुद्ध सारंग काफ़ी थाठ से ज़्यादा जुड़ता है।
प्रकृति में इस समय प्रखरता और तीक्ष्णता होते हुए भी एक प्रकार से शांत, स्थिर वातावरण का अनुभव होता है। यही अनुभव इस समय के रागों में पाया जाता है। शुद्ध सारंग में भी इस शांतिमय वातावरण का अनुभव मिलता है। लेकिन इस राग में शुद्ध मध्यम और तीव्र मध्यम का जो खेल है वह मानो सूरज और बादल के धूप-छाँव की तरह है। जहाँ एक तरफ़ तीव्र मध्यम, सूर्य की तीव्रता का अनुभव देता है वही दूसरी तरफ़ शुद्ध मध्यम, बादलों में छिपे सूर्य की शीतलता का अनुभव देता है।
प्रस्तुत राग में यह प्रयास है की पुनरावृत्ति ( repetition) का संगीत में क्या महत्व है, वह दर्शाया जाए। repetition से ही नवनिर्मित सम्भव है। repetition से जब एक पहलू सामने आता है और प्रस्थापित होता है, उसी के बाद नया पहलू जीवित होता है। संगीत के इसी सिद्धांत को शुद्ध सारंग के प्रस्तुतिकरण में दर्शाने का प्रयास किया गया है।